सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सनातन क़साई बनाम कुत्ताए लोग

सनातन क़साई बनाम  कुत्ताए लोग

यूं स्वान (कुत्ता जी )हमारे पर्यावरण का हिस्सा नहीं रहा है लेकिन इस मामले में गोरों की तारीफ़ करनी पड़ेगी जिनके घर के बाहर लिखा होता है। माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। ये लोग अपने पैट को डायपर तो नहीं पहनाते लेकिन उसका मलमूत्र ,एक्स्क्रीटा पूपर स्कूपर से खुद उठाकर उसका निपटान करते हैं। इलाज़ मुहैया होता  उनके पैट को डायबिटीज से लेकर कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग तक.

हमारे अमीरज़ादे पैट को इलाज़ तो  मुहैया करवाते हैं लेकिन आसपास के पर्यावरण को गंधाते है -दिल्ली का सबसे लोकप्रिय पार्क लोदी   गार्डन भी इनके लाडलों के मलमूत्र से गंधाता है। जगह जगह  डॉग एक्स्क्रीटा आपको परेशान करेगा।

इफ दी डॉग   बिलोंग्स ट यू ,सो डज़ हिज एक्स्क्रीटा। लेकिन ये कुत्ताए लोग इसकी अनदेखी करते हैं। गंधा रखा  इन्होनें कॉलोनी मोहल्लों पार्कों को।

आइये अब भारतीय नस्ल की गाय की बात की जाए विदेशी जिसका मूत्र आयात करते हैं दवा निर्माण के लिए। गौ रेचन (गाय के कान का मैल )मीग्रैन में रामबाण है। तो पंचगव्य यज्ञ को सम्पूर्णता प्रदान करता है। गाय का दूध ,घृत ,दही ,गोबर  ,गौ मूत्र  से एक ख़ास अनुपात में मिलाने से प्राप्त होता है पंचगव्य। गाय जब अपने हिस्से का दूध दे चुकी होती है प्रजनन भुगता चुकी होती है तब भी उससे प्राप्त सारे उत्पाद चारे की कीमत से ज्यादा ही रहते हैं।

लेकिन चारे के  स्थान पर उसे मिलता है पॉलीथिन का पेकिट जिसमें डिस्पोज़बल ब्लेड भी हो सकता है  है टूटा  कांच भी रसोई से निकला कचरा भी ऑर्गेनिक इनऑर्गेनिक सब कुछ उसे कचरे के ढेर से निशुल्क मिलता है।

सनातन कसाई  हैं गाय को दुह कर कचरे के ढेर पर छोड़ने वाले लोग। कसाई तो एक ही बार ज़िबह करता है लेकिन ये शहरी खिलाड़ी रोज़ उसकी हत्या करते हैं। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : | न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : |  न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||   सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.facebook.com/watch/?v=2773670096064129 भारतीय राजनीति के राहु मास्टर राहुल की आज यही नियति है ,उम्र इक्यावन मेधा बालवत। इनका कद ग्रुप आफ ट्वेंटी थ्री (गुलाम नबी आज़ाद साहब, कपिल सिब्बल साहब ,मनीष तिवारी जैसी समृद्ध परम्परा के धनी - मानी व्यक्तियों के बीच आज वैसे ही निस्तेज है जैसे हंसों के बीच बगुला ,कोयलों के बीच कागा ). जैसा बीज वैसा फल आज न इन्हें भारतीय इतिहास की जानकारी है न भूगोल की ,इनकी अम्मा आज भी हिंदी रोमन लिपि में लिखती पढ़ती हैं। देश में २०१९ से एक मत्स्य मंत्रालय भी है इन्हें इसका इल्म  नहीं है ?ये गांधी किस  बिना पे हैं जबकि इनके दादा फ़िरोज़ खान थे -पूछ देखो ,बगलें झाँकने लगेगा यह इक्यावनसाला बालक।   इन्हें अपने  खानदान अपनी ही जड़ों का बोध  नहीं है उत्तर दक्षिण का यह मतिमंद बालक  - विभेद अपनी विभेदन -शीला विखण्डनीय   बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आज बतला रहा है। यकीन तो करना ही होगा।  https://www.firstpost.com/politics/rahul-gandhis-north-south-remark-was-co

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधान होगा के पाप क्या है, पुण्य क्या है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? कर

उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं

सोशल मीडिया पर खालिस्तान पाकिस्तान ज़िंदाबाद करवाने वाले छद्म विडिओ कौन इम्प्लांट करवा रहा है इसे बूझने के लिए विशेष कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। ये वही लोग हैं जो कहते तो अपने को नबी का गुलाम हैं लेकिन गुलामी इटली वाली बीबी की करते हैं वह जिसे न सिख गुरुओं की परम्परा का बोध है न सर्वसमावेशी  सनातन धर्मी धारा का।  उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं।  बानगी देखिये  व्हाटऐप्स पर प्रत्यारोप किये एक विडिओ की :" एक छद्म सरदार  के आगे दो माइक्रोफोन हैं जिन पर वह इनकोहिरेंट स्पीच परस्पर असंबद्ध बातें एक ही साथ बोल रहा है। खालिस्तान, १९८४ के दंगे ,मुसलमान दुनिया भर में इतने हैं के वे पेशाब कर दें तो तमाम हिन्दू उसमें डुब जाएँ "   कहना वह ये चाहता है खलिस्तानी उस पेशाब में तैर के निकल जायेंगें।  ज़ाहिर है ये सरदार नकली था। इटली वाली बीबी का एक किरदार था। असली होता तो गुरुगोविंद सिंह की परम्परा से वाकिफ होता जिन्होंने औरग़ज़ेब के पूछने पर कहा था -हिन्दू है मज़हब हमारा। असली सरदार होता तो गुरु अर्जन देव की कुर्बानी