सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अव्यक्तोक्षर इत्युक्तस्तमाहु : परमां गतिम् गतिम् | यं प्राप्य : न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||

अव्यक्तोक्षर  इत्युक्तस्तमाहु : परमां  गतिम् गतिम् | 

यं प्राप्य :  न  निवर्तन्ते  तद्धाम परमं मम || 

उसी को अव्यक्त और अक्षर -ऐसा कहा गया है तथा उसी को परमगति कहा गया है और जिसको प्राप्त होने पर जीव फिर लौटकर संसार में नहीं आते ,वह मेरा परमधाम है। 

व्याख्या :वास्तव में परमात्म तत्व वर्णनातीत है | अव्यक्त ,अक्षर ,परमगति आदि नाम उस तत्व का संकेत मात्र  करते हैं ; क्योंकि वह अव्यक्त -व्यक्त ,अक्षर -क्षर ,गति -स्थिति आदि से रहित निरपेक्ष तत्व है। उसे प्राप्त होने पर जीव लौटकर संसार में नहीं आता। कारण की जीव स  परमात्म तत्व  का सनातन अंश होने से उससे अलग नहीं है। संसार में तो वह भूल से अपने को स्थिर मानता है। वास्तव में शरीर ही संसार में स्थित है ,स्वयं नहीं। 

पुरुष : स पर : पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया | 

यस्यांत : स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततं। 

हे पृथानन्दन अर्जुन !सम्पूर्ण प्राणी जिसके अंतर्गत हैं और जिससे यह सम्पूर्ण संसार  व्याप्त है ,वह परम पुरुष परमात्मा तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है। 

व्याख्या :ज्ञान मार्ग में तो ग्यानी पुरुष  संसार से छूट जाता है ,मुक्त हो जाता है और अपने  स्वरूप में स्थित हो जाता है। परन्तु भक्ति मार्ग में संसार से मुक्त होने के  साथ- साथ भक्त को भगवान् की  तथा उनके प्रेम की  भी प्राप्ति हो जाती है।  अत : कर्मयोग तथा ज्ञानयोग तो साधन  हैं और भक्ति योग साध्य है।    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : | न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : |  न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||   सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.facebook.com/watch/?v=2773670096064129 भारतीय राजनीति के राहु मास्टर राहुल की आज यही नियति है ,उम्र इक्यावन मेधा बालवत। इनका कद ग्रुप आफ ट्वेंटी थ्री (गुलाम नबी आज़ाद साहब, कपिल सिब्बल साहब ,मनीष तिवारी जैसी समृद्ध परम्परा के धनी - मानी व्यक्तियों के बीच आज वैसे ही निस्तेज है जैसे हंसों के बीच बगुला ,कोयलों के बीच कागा ). जैसा बीज वैसा फल आज न इन्हें भारतीय इतिहास की जानकारी है न भूगोल की ,इनकी अम्मा आज भी हिंदी रोमन लिपि में लिखती पढ़ती हैं। देश में २०१९ से एक मत्स्य मंत्रालय भी है इन्हें इसका इल्म  नहीं है ?ये गांधी किस  बिना पे हैं जबकि इनके दादा फ़िरोज़ खान थे -पूछ देखो ,बगलें झाँकने लगेगा यह इक्यावनसाला बालक।   इन्हें अपने  खानदान अपनी ही जड़ों का बोध  नहीं है उत्तर दक्षिण का यह मतिमंद बालक  - विभेद अपनी विभेदन -शीला विखण्डनीय   बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आज बतला रहा है। यकीन तो करना ही होगा।  https://www.firstpost.com/politics/rahul-gandhis-north-south-remark-was-co

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधान होगा के पाप क्या है, पुण्य क्या है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? कर

उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं

सोशल मीडिया पर खालिस्तान पाकिस्तान ज़िंदाबाद करवाने वाले छद्म विडिओ कौन इम्प्लांट करवा रहा है इसे बूझने के लिए विशेष कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। ये वही लोग हैं जो कहते तो अपने को नबी का गुलाम हैं लेकिन गुलामी इटली वाली बीबी की करते हैं वह जिसे न सिख गुरुओं की परम्परा का बोध है न सर्वसमावेशी  सनातन धर्मी धारा का।  उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं।  बानगी देखिये  व्हाटऐप्स पर प्रत्यारोप किये एक विडिओ की :" एक छद्म सरदार  के आगे दो माइक्रोफोन हैं जिन पर वह इनकोहिरेंट स्पीच परस्पर असंबद्ध बातें एक ही साथ बोल रहा है। खालिस्तान, १९८४ के दंगे ,मुसलमान दुनिया भर में इतने हैं के वे पेशाब कर दें तो तमाम हिन्दू उसमें डुब जाएँ "   कहना वह ये चाहता है खलिस्तानी उस पेशाब में तैर के निकल जायेंगें।  ज़ाहिर है ये सरदार नकली था। इटली वाली बीबी का एक किरदार था। असली होता तो गुरुगोविंद सिंह की परम्परा से वाकिफ होता जिन्होंने औरग़ज़ेब के पूछने पर कहा था -हिन्दू है मज़हब हमारा। असली सरदार होता तो गुरु अर्जन देव की कुर्बानी