सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज :बकौल आपके यह फैसला पक्ष विपक्ष का नहीं भारत की एक चिरकालिक समस्या का राष्ट्रीय समाधान प्रस्तुत करता है।

इस विषय में माननीय असददुद्दीन ओवैसी अपनी खुद की राय रखते हुए कहते हैं ,सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम ज़रूर है ,इनसोलुबिल नहीं है। हम उनसे असहमत रहते हुए उनके   विमत का भी उतना ही आदर करते  हैं यही तो लोकतंत्र की ताकत है बस यदि यह उनकी निजी राय है तो अपने लिए 'हम 'सम्बोधन नहीं 'मैं 'मेरी ' राय में का इस्तेमाल करें।नाहक अपनी जुबां मुसलमानों के मुंह में फिट करने मुस्लमानाओं की ज़ुबाँ बतलाने की कोशिश न करें। इस्लाम का तो मतलब ही अमन है। कैसे तालिबान (इल्मी ,विद्यार्थी हैं ?)ज़नाब ओवेसी साहब ?

कई लोग पूछ रहे हैं वे बे -शक मुस्लमान है, मुस्लिम हैं ,लेकिन सुप्रीम -मुस्लिम,सुपर मुसलमां  नहीं हैं। चाहे तो वह आइंदा आने वाले संभावित क्यूरेटिव पिटीशन की ज़िरह अपने हाथ में ले लें। यह टाइटिल सूट पर फैसला था ,जो खुदाई में मिले साक्ष्यों  के आधार पर दिया गया है कोरी आस्था पर नहीं। तुलसीदास के समय (भारत का बिखरा हुआ आस्थाहीन मध्यकाल ,संत समाज जिसे एक रखने की कोशिश कर रहा था ,रहीम दास (अब्दुलर्रहीम खाने खाना ,रसखान आदि ),तुलसीदास का दौर था जिन्होनें अपनी दोहावली में शिया  मीर बाकी का ज़िक्र किया जो सुन्नी बाबर के दौर में ही था।वहां  भी  बाबरी मस्जिद तोड़कर मस्जिद बनाने का ज़िक्र आया  है। आईने अकबरी में भी अयोध्या और राम का ज़िक्र है। अकबर भी अयोध्या गए थे गुरुनानक देव भी।इसका भी ज़िक्र आया है।

कहने वाले तो यह भी कहते दिखे थे  ,न कभी राम थे न रामसेतु था ,जबकि 'नासा' ने भी अपनी उपग्रह से खींची तस्वीरों में राम सेतु का ज़िक्र किया है।
ओवेसी साहब के लिए राजा और संत  रहीम का एक दोहा प्रस्तुत है :

देनहार कोई और है ,देत  रहत दिन  रैन,

लोग भरम  मो पे करें ,ताते नीचे नैन।

गड़े मुर्दे उखाड़ने का वक्त नहीं है फैसले पर फासले बढ़ाने का दौर नहीं है इस दरमियान भारत बहुत आगे निकलने की कोशिश में है।

मस्जिद  न मंदिर के फेरों में ,

राम मिलें शबरी के जूठे बेरों में।

चाहें गीता बांचिये ,या पढ़िए क़ुरआन,

 तेरा मेरा प्रेम ही हर मज़हब की जान।

माल है नायाब (लेकिन )अक्सर गाहक है बे -खबर ,

शहर में हाली ने खोली है दूकां सबसे अलग।     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : | न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : |  न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||   सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.facebook.com/watch/?v=2773670096064129 भारतीय राजनीति के राहु मास्टर राहुल की आज यही नियति है ,उम्र इक्यावन मेधा बालवत। इनका कद ग्रुप आफ ट्वेंटी थ्री (गुलाम नबी आज़ाद साहब, कपिल सिब्बल साहब ,मनीष तिवारी जैसी समृद्ध परम्परा के धनी - मानी व्यक्तियों के बीच आज वैसे ही निस्तेज है जैसे हंसों के बीच बगुला ,कोयलों के बीच कागा ). जैसा बीज वैसा फल आज न इन्हें भारतीय इतिहास की जानकारी है न भूगोल की ,इनकी अम्मा आज भी हिंदी रोमन लिपि में लिखती पढ़ती हैं। देश में २०१९ से एक मत्स्य मंत्रालय भी है इन्हें इसका इल्म  नहीं है ?ये गांधी किस  बिना पे हैं जबकि इनके दादा फ़िरोज़ खान थे -पूछ देखो ,बगलें झाँकने लगेगा यह इक्यावनसाला बालक।   इन्हें अपने  खानदान अपनी ही जड़ों का बोध  नहीं है उत्तर दक्षिण का यह मतिमंद बालक  - विभेद अपनी विभेदन -शीला विखण्डनीय   बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आज बतला रहा है। यकीन तो करना ही होगा।  https://www.firstpost.com/politics/rahul-gandhis-north-south-remark-was-co

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधान होगा के पाप क्या है, पुण्य क्या है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? कर

उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं

सोशल मीडिया पर खालिस्तान पाकिस्तान ज़िंदाबाद करवाने वाले छद्म विडिओ कौन इम्प्लांट करवा रहा है इसे बूझने के लिए विशेष कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। ये वही लोग हैं जो कहते तो अपने को नबी का गुलाम हैं लेकिन गुलामी इटली वाली बीबी की करते हैं वह जिसे न सिख गुरुओं की परम्परा का बोध है न सर्वसमावेशी  सनातन धर्मी धारा का।  उसी की लिखी पटकथा का मंचन करते रहते हैं सैफुद्दीन सोज़ और नबी गुलाम आज़ाद और फिर यकायक शीत निद्रा में चले जाते हैं।  बानगी देखिये  व्हाटऐप्स पर प्रत्यारोप किये एक विडिओ की :" एक छद्म सरदार  के आगे दो माइक्रोफोन हैं जिन पर वह इनकोहिरेंट स्पीच परस्पर असंबद्ध बातें एक ही साथ बोल रहा है। खालिस्तान, १९८४ के दंगे ,मुसलमान दुनिया भर में इतने हैं के वे पेशाब कर दें तो तमाम हिन्दू उसमें डुब जाएँ "   कहना वह ये चाहता है खलिस्तानी उस पेशाब में तैर के निकल जायेंगें।  ज़ाहिर है ये सरदार नकली था। इटली वाली बीबी का एक किरदार था। असली होता तो गुरुगोविंद सिंह की परम्परा से वाकिफ होता जिन्होंने औरग़ज़ेब के पूछने पर कहा था -हिन्दू है मज़हब हमारा। असली सरदार होता तो गुरु अर्जन देव की कुर्बानी