मनमोहन -२ : कर्णाटक कथा उतना लाचार नहीं है कर -नाटक का मनमोहना-२ जितना की मनमोहना -१ था, तकरीबन -तकरीबन ज़र खरीद गुलाम सा.उसी की सरकार के निर्णय को कांग्रेस के सबसे अल्पबुद्धि राजकुमार ने फाड़ के फैंक दिया था। तब एक शायर ने इस स्थिति पर कहा था : ज़ुल्म की मुझपर इंतिहा कर दे , मुझसा बे -जुबां फिर कोई मिले न मिले। नाटक तो अब कर्नाटक में शुरू हुआ है।अभी तक विदूषक की ही मंच पे आवाजाही थी। कुमार -सामी (आसामी नहीं )अपने पिता -श्री -जी के साथ हुई बदसुलूकी भूले नहीं हैं। गौड़ा -देव-जी अभी जीवित है। मल्लिका से पाई -पाई का हिसाब लिया जाएगा। कैसी दया ?दया और मल्लिका ? ये राजनीति की उलटबासी है दोस्तों। मंत्रालय बन ने दो।