सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आजकल हिन्दुस्तान का आलम यह है कहीं से एक ईंट दरक जाए वहां से कई कई योगेंद्र यादव ,दर्शन पाल ,बकैत टिकैत ,ग्रेटा थूंबर्ग ,दिशा रवि ,निकिता जैकब ,फरार शांतनु निकल आते हैं

  सर्वकालिक सार्वत्रिक विघटनकारी हड़ताली (आज रेल रोक रहें हैं ,कई महीनों से हाइवेज़ को अपनी ज़बरिया जागीर बनाये बैठे हैं )आजकल भारत में आमफहम हैं। इन्हें आदर पूर्वक फॉरेन डिसइंटिगेरटिव इन्वेस्टर्स भी कहा जाता है। आजकल हिन्दुस्तान का आलम यह है कहीं से किसी इमारत की एक ईंट दरक जाए वहां से कई कई योगेंद्र यादव ,दर्शन पाल ,बकैत टिकैत ,ग्रेटा थूंबर्ग ,दिशा रवि ,निकिता जैकब ,फरार शांतनु निकल आते हैं। इनकी उपस्थिति ब्रह्म की तरह हो गई है जेएनयू कैम्पस हो ,,शाहीनबाग हो या फिर गाज़ीपुर ,सिंघु टिकरी ,आदि बोरडर ये स्वयंप्रकाषित अवतरित हो जाते हैं। बड़ी बड़ी कंपनियां इन्हें बे -शुमार धन मुहैया करवा रहीं हैं। यह एक तरह का इवेंट मैनेजमेंट है जिसमें रोज़गार की अपार संभावनाएं आलमी स्तर पर मौजूद हैं। एमओ धालीवाल (केनेडा )से लेकर पीटर्स तक ,मीना हैरिस एवं सखियों से लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स तक कई धनपति और धन- पत्नियाँ यहां देखी जा सकती है। किसान आंदोलन के समर्थन में ये बड़े -बड़े इस्तेहार पूरे पन्ने के छाप रहे हैं। एक तरफ ये भारत के किसानों को सब्सिडी देने से खफा हैं क्योंकि भारतीय कृषि उत्पाद आलमी बाज़ार में सबसे