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Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - Day 2 ,Part 4

भगवान् का प्रिय आहार है भक्त का अहंकार। भगवान् इसे रहने नहीं देते नारद समझ गए भगवान् ने मुझे अपनी माया के वशीभूत कर लिया था। नारद शांत हो गए और ध्यान में बैठ गए।  कथा का सन्देश है :जब कोई व्यक्ति बहुत क्रोध करे तो समझ जाना यह असफल व्यक्ति है ,हार गया है। इससे बचने का सहज उपाय है भगवान् के गुणों को याद करो उस समय।  पूर्व कथा प्रसंग : मनुशतरूपा के सफल तप के बद आकाशवाणी का होना -आप दोनों ही कौशल्या और दशरथ होंगे ,मैं आपका पुत्र बनकर आऊंगा लेकिन अभी इंतज़ार करना होगा।  उधर जय विजय के शाप के कारण भी रावण कुम्भकर्ण(कुम्भ -करण ) का आना और नारद के शाप को भी अंगीकार कर भगवान् का स्वयं भी राम बनकर आने को उत्सुक होना । राम के जन्म के कारण बने।  आइये चलते हैं अयोध्या जहां समूची वसुंधरा के वैभव का एक मात्र उपभोक्ता राजा दसरथ -जब वृद्धावस्था नज़दीक आ गई -किसे सौंपे ये ऐश्वर्य वसुंधरा का। देवताओं को जब भय होता है मैं छलांग लगाकर स्वर्ग पहुंचता हूँ। वशिष्ठ जी मेरे गुरु हैं। मैं इच्छवाकु वंश का प्रतापी सम्राट -मुझे राजपुत्र नहीं चाहिए ? मैं उन्मादियों को देख रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ रावण को

भारतीय वंश की गौ माताओं के मूत्र से ही एच आई वी एड्स की, इतर दुसाध्य रोगों की दवा बन रही है

गौ मूत्र का आयात यहां अमरीका में बड़ी मात्रा में भारत से हो रहा है . भारतीय वंश की  गौ माताओं  के मूत्र से ही एच आई वी एड्स की, इतर दुसाध्य रोगों की दवा बन रही है। जर्सी गाय इस मामले में किसी मतलब की नहीं है। शिवाम्बु पान हमारे मुनि -समान एक  प्रधानमंत्री मुरारजी भाई देसाई -  नित्य प्रात :  करते रहें हैं।  और गोबर तो भारतीय घरों का ईंधन रहा है।भारतीय संस्कृति और कृषि एवं औषधि तंत्र की जान रहा है। इस्कॉन समूह इससे धूपबत्ती ,साबुन,तेल ,इत्र फुलैल  आदि सौंदर्य प्रसाधान तैयार करता रहा है।   विषाणु -रोगाणु तमाम किस्म के पैथोजन्स रोगाणु गोबर के लीपे हुए आँगन के पास नहीं फटकते।नासा के अनुसार गोबर से लीपे गए दरो -दीवार ,छत ,आँगन ,दीवारे चौबारे ,बैठक आदि रेडिओधर्मी धूल के प्रभाव से बचे रहते हैं रेडिओ -विकिरण पास नहीं फटकता।  आँगन चौक पुराओ री  माई ,रंगमहल में , आज तो बधाई री माई रंगमहल में।  आज तो बधाई बाज़ी रंगमहल में।  लोक संस्कृति में रचा बसा हुआ है गोबर।   हमारा बुलंदशहर(पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) आवास का कच्चा घर हमारे बचपन में इसी गोबर से लीपा जाता था। हमें आज भी उसके ब

रानी पद्मिनी (पद्मावती )का चरित्र निभाने वाली अभिनेत्री को पहले छः माह तक तप करना चाहिए था

रानी पद्मिनी (पद्मावती )का चरित्र निभाने वाली अभिनेत्री को पहले छः माह तक तप करना चाहिए था ,लेकिन वह फंस गईं संजय लीला फंसाली के कुचक्र में। ये कामनिष्ठ (उदर और काम से परिचित हैं ),नाभि से नीचे  के संबंधों तक ही सीमित है इनकी उड़ान।  पद्मावती पे फिल्म बनाते हैं  जौहर का मायना अपनी अभिनेत्री को भी समझा देते जो ऊँगली की चोट से जलन से बचने के लिए अपने देह आगे कर देगी उसे क्या मालूम पद्मिनी का जौहर। रूप माधुरी तक ही सीमित नहीं थीं रानी पद्मिनी। शौर्य की प्रतीक थीं। सर्वोच्च होम करने की राजपूती शान बान और आन की प्रतीक थीं।  अब वह प्रलाप कर रहीं हैं वही लोग पद्मावती का विरोध कर रहें हैं जो गाय का गोबर खाते हैं और पेशाब पीते हैं।   निवेदन है रूप गर्विता जी थोड़ा भारतीय संस्कृति को भी देख लें जान लें के पांच गव्य क्या होता है। जान लें के गाय के गोबर से लीपि  गई छत और दीवारें (दरो -दीवार )रेडियो -धर्मी विकिरण से भी प्रभावित नहीं होतीं हैं। जान लें -गोपियाँ बाल कृष्ण (बालक कृष्ण )की तब नज़र उतारने के लिए उन्हें गोबर से स्नान करवातीं हैं जब वह पूतना के प्राण स्तनों से चूसने के बाद उस दान

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji Day 2(Part ll ,lll )

संदर्भ -सामिग्री : (१ )https://www.youtube.com/watch?v=_1UZvf4IGu8 (२) LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2 अध्यात्म का अर्थ है जो स्वभाव की ओर लेकर आये जिससे अपने स्वरूप का बोध हो। जब व्यक्ति अपने स्वभाव को उपलब्ध होता है तब उसके पास भगवदीय सामर्थ्य उजागर हो जाती है। हमारी संस्कृति नर से नारायण बनाने वाली संस्कृति है।  वेद के अनुसार यह कहा गया -अमृतस्य पुत्रा -हम अमृत की संतानें हैं। हमारी आध्यात्मिक यात्रा तभी संपन्न होती है जब हम अपनी अनंतता को उपलब्ध हो जाते हैं। अपनी नित्यता हर पल है। अब तो विज्ञान भी कहता है कोई चीज़ बदलती तो है लेकिन रूप बदलने के बाद भी वह रहती तो है। सदा रहती है सदा। तो जो नित्य तत्व है अपराजेय तत्व है ,शाश्वत तत्व है उस तत्व का बोध कराने वाली हमारी यह संस्कृति है। वेदों का एक ही घोष है मनुष्य केवल एक ही काम करे और वह ही उसके लिए आवश्यक है। वह अपने नित्य सनातन स्वरूप का बोध करे। वह भोर में उठकर शुभ संकल्प करे। और वह अपने स्वरूप को उपलब्ध हो।  हम अपने पाथेय को विस्मृत न कर बैठें। भारतीय संस्कृति यह कहती है अपने

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2,Part ll

सन्दर्भ -सामिग्री : (१ ) LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2 अध्यात्म का अर्थ है जो स्वभाव की ओर लेकर आये जिससे अपने स्वरूप का बोध हो। जब व्यक्ति अपने स्वभाव को उपलब्ध होता है तब उसके पास भगवदीय सामर्थ्य उजागर हो जाती है। हमारी संस्कृति नर से नारायण बनाने वाली संस्कृति है।  वेद के अनुसार यह कहा गया -अमृतस्य पुत्रा -हम अमृत की संतानें हैं। हमारी आध्यात्मिक यात्रा तभी संपन्न होती है जब हम अपनी अनंतता को उपलब्ध हो जाते हैं। अपनी नित्यता हर पल है। अब तो विज्ञान भी कहता है कोई चीज़ बदलती तो है लेकिन रूप बदलने के बाद भी वह रहती तो है। सदा रहती है सदा। तो जो नित्य तत्व है अपराजेय तत्व है ,शाश्वत तत्व है उस तत्व का बोध कराने वाली हमारी यह संस्कृति है। वेदों का एक ही घोष है मनुष्य केवल एक ही काम करे और वह ही उसके लिए आवश्यक है। वह अपने नित्य सनातन स्वरूप का बोध करे। वह भोर में उठकर शुभ संकल्प करे। और वह अपने स्वरूप को उपलब्ध हो।  हम अपने पाथेय को विस्मृत न कर बैठें। भारतीय संस्कृति यह कहती है अपने स्वरूप को पहचानो  जो अपराजेय है। हमारी संस्कृति