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एक प्रतिक्रिया चंद्रु जी के हिन्दू टेम्पल, केंटन(मिशिगन ) में दिए प्रेजेंटेशन पर। चंद्रु जी अमरीकी हिन्दू स्वयं सेवक संघ के एक समर्पित स्वयंसेवक हैं। मिशिगन चैप्टर के एक सक्रिय ऊर्जित कर्मी है। विषय था इंटर रेलिजन फेथ और हिंदू धर्म।

Vote of thanks Virendra Kumar Sharma   < veerubhai1947@gmail.com > 10:39 AM (4 minutes ago) to  acharyacp आदरणीय भाई साहब चंद्रु !जितना अपना और सहज यह सम्बोधन है आपका अपनाया हुआ संक्षिप रूप है उतना ही सहज आपका सम्बोधन सम्भाषण -विमर्श था - हिंदुत्व के सर्वसमावेशी स्वरूप पर। हिंदुत्व की बुनियाद के केंद्र में धर्म के मूल तत्व हैं यानी दया करुणा प्रेम सर्वहितकारी कर्म।  अर्थ उपार्जन बिना किसी को आहत किये किया जाए - साईं उतना दीजिये जामें कुटम समाय ...  'काम -रस 'भले जीवन का हिस्सा हो आनंद की प्राप्ति के लिए धर्मानुरूप ही चखा जाए। मोनोगेमि और पोलीगेमी का अंतर समझा जाए।  ईश्वर ना काला है न गोरा है न गंदुम,न नाटा है न लम्बू ,न स्त्री है न पुरुष है वह तो नटराज है। अर्द्धनारीश्वर है। यूँ सब रंग रूप आकार कीट पतंगों में उसी का चेतन तत्व है जड़ से लेकर जंगम तक एक वो ही है वो ही है। लेकिन कोई एक विशेष आकार या वर्ण उसका नहीं है। वह निराकार भी है साकार भी। सत-रजो -तमो गुण उसे बांधते नहीं है इन

बौद्धिक भकुए चीन के राष्ट्रवादी गुलाम ,कांग्रेस के कूकर आज ज्यादा ही भौं भौं कर रहे हैं। हद तो यह है हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्द सेक्युलर ढाँचे में फिट करने की लगातार कोशिश की गई

Veeru Sahab October 27, 2018 at 1:44 AM एक टिपण्णी प्रधानमंत्री मोदी खुद राफेल घोटाले में संलिप्त है- रणधीर सिंह सुमन लो क सं घ र्ष ! पर Randhir Singh Suman पर : बौद्धिक भकुए चीन के राष्ट्रवादी गुलाम ,कांग्रेस के कूकर आज ज्यादा ही भौं भौं कर रहे हैं। हद तो यह है हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्द सेक्युलर ढाँचे में फिट करने की लगातार कोशिश की गई है।  अब कोशिश अयोध्या के बरक्स शबरीमला (सबरीमाला )को रखने की हमारे रक्तरँगी लेफ्टिए कर रहे हैं। ये महिला ब्रिगेड उन्हीं लोगों की है जो माथे पे बड़ी बिंदी लगातीं हैं तुलसी वन निधिवन जैसे प्रतीकात्मक वृंदा और सीताराम खे -चारि जैसे नाम रखे घूम रहे हैं इन्हीं प्रतीकों का नाश करने के लिए। क्या यह आकस्मिक है महिलायें ही महिलाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहीं हैं।  सबरीमला के पावित्र्य के नाम पर। जिस यौनि से निकलके आये जिसके रक्तस्राव से पोषित पल्लवित हुए उसी से ख़तरा। कैसा खतरा और कैसा पावित्र्य है यह इस बात को नाभि से नीचे के संबंधों को ही सम्बन्ध बूझने वाले कामोदरी काम -रेड्डी समझेंगे भी कैसे ?आप मौज़ू सवाल उठा रहे

इस महिला ने किया ये असंभव कारनामा , गीता के श्लोकों को कपड़े पर बुना

संक्षिप्त विवरण  हिंदू धर्म के सबसे बड़े धर्म ग्रंथ में भगवत गीता को मान्यता प्राप्त है, जिसमें  दुनियाभर का ज्ञान दिया हुआ है. कई लोग इससे ज्ञान लेने के लिए और जानकारी के लिए नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं . इसके ज्ञान के ही कारण इस ग्रन्थ को आज विश्वधर्मग्रंथ का स्थान मिला है। असम असम। हिंदू धर्म के सबसे बड़े धर्म ग्रंथ में भगवत गीता को मान्यता प्राप्त है, जिसमें  दुनियाभर का ज्ञान दिया हुआ है. कई लोग इससे ज्ञान लेने के लिए और जानकारी के लिए नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं . इसके ज्ञान के ही कारण इस ग्रन्थ को आज विश्व  धर्म ग्रंथ का स्थान मिला है।   श्रीमद्भगवद्गीता  के बारे में बात करें इसे लोग अलग-अलग तरीके से देखते हैं और इसके लिए ऐसी ही कुछ अलग धारणाएं भी बना के रखी हैं. जहाँ गीता पढ़ना कई लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल भी होता है  वहीँ एक महिला गीता को इंग्लिश और संस्कृत दोनों भाषा में कपड़े पर बून रही है. जी हाँ, यकीन नहीं होगा आपको भी, इसलिए हम कुछ ऐसा ही बताने जा रहे हैं, ऐसी ही कुछ लिखावट है जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा. आज तक आपने गीता को

अकर्म एवं भक्ति, SI-11, by shri Manish Dev ji (Maneshanand ji) Divya Srijan Samaaj

सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=otOjab3ALy4 जो अकर्म  में कर्म को और कर्म में अकर्म को देख लेता है बुद्धिमान वही है। भगवान् अर्जुन को अकर्म और कर्म के मर्म को समझाते हैं। कर्म जिसका फल हमें प्राप्त  होता है वह है और अकर्म  वह जिसका फल हमें प्राप्त नहीं होता है।   वह योगी सम्पूर्ण  कर्म करने वाला है जो इन दोनों के मर्म को समझ लेता है।  अर्जुन बहुत तरह के विचारों से युद्ध क्षेत्र में ग्रस्त है । युद्ध करूँ न करूँ।  सफलता पूर्वक  कर्म करना है तो इस रहस्य को जान ना ज़रूरी है। अकर्म  वह है -जिसका फल प्राप्त नहीं होता। जो कर्म अनैतिक है जिसे नहीं करना चाहिए वही विकर्म है।वह कर्म जो नहीं करना चाहिए जो निषेध है वह विकर्म है।  जिस दिन कर्म और अकर्म का भेद समझ आ जाएगा। मनुष्य का विवेक जागृत होगा उसी दिन भक्ति होगी।तब जब घोड़े वाला चश्मा हटेगा और उसके स्थान पर विवेक का चश्मा लगेगा।    भगवान् अर्जुन से कहते हैं :हे अर्जुन !तू कर्म अकर्म और विकर्म के महत्व को मर्म को जान तभी तेरे प्रश्नों का समाधान होगा के पाप क्या है, पुण्य क्या है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ? कर

कर्म, अकर्म एवं विकर्म by Shri Manish Dev ji(Maneshanand ji), SI-10, Divya Srijan Samaaj

प्रकृति स्वयं कर्म परायण है। ये जीव जो प्रकृति के वश रहता है यह भी कर्म परायण है प्रकृति (इसके तीन गुण )जीव से कर्म करवा ही लेते है। भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म ,अकर्म और विकर्म का स्वरूप समझाते हुए कहते हैं -हे अर्जुन  कर्म क्या है और अकर्म क्या है इसे लेकर बड़े बड़े ग्यानी व्यामोह में फंसे रहते हैं। कर्मों की गति बड़ी गहन है।  किम कर्म किमकर्मेति कव्योअपयत्र मोहिता : |  तत् ते  कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यते अशुभात ||  कर्म के फल का स्वरूप कैसा होगा उसके हिसाब से कर्म को तीन भागों में बांटा जा रहा है : कर्म ,अकर्म ,विकर्म।  कर्म करने में नीयत के अनुसार फल मिलता है मंदिर में रहने वाला पुजारी पूजा अर्चना भगवान् को नहलाना आदि कर्म करता हुआ दिख सकता है लेकिन अगर उसकी नीयत कहीं और है भोग विलास में है तो उसका कर्म अकर्म हो जाएगा। इसी प्रकार एक नेता या समाज सेवी ऊपर से समाज सेवा  में संलग्न दिख सकता है लेकिन अगर उसकी नीयत वहां नहीं है सेवा में उसका मन नहीं है किसी और एषणा में  गुंथा है तो उसका कर्म भी अकर्म  हो जाएगा।  शुकदेव और राजा जनक की कथा आती है