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Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - Day 3(Part lV)

स्वभाव से जीतिए सबको प्रभाव से नहीं-

चरित्र से ही आप किसी को जीत सकते हैं अपनी सत्यनिष्ठा से ही आप सबको अपना बना सकते हैं।स्वभाव दिखाइए विनम्र बनिए। राम ने कोई प्रभाव नहीं दिखाया अपने  स्वभाव से ही ताड़का का तारण किया और वो सबके सब अनुयायी बन गए। वह समूचा सिद्ध -आश्रम निष्कंटक हो गया क्योंकि अपराधियों को अभय दान दे दिया गया   वे सब अनुयायी बन गए। 

राम पहली बार जंगल को निकले -वृक्षों पर लटकती हुई लताएं  तमाल के वृक्ष जम्बू तमाल पाकर रसाल ,तितलियाँ भ्रमर  फूलों पर मंडराते हुए।राम आह्लादित हैं वन में। 
आज पूरी दिल्ली सारे हमारे महानगर परेशान हैं  आज गौरैया कहीं नहीं हैं ,गिद्ध नहीं हैं ,जुगनू नहीं हैं तितलियाँ नहीं हैं भ्रमर नहीं हैं झींगुर नहीं हैं किसकी वजह से -मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगों  की वजह से -जिसने  गौरैयाओं   को मार दिया। अन्न  की पोषकता गई पुष्पों की गंध गई।अन्न की पाचकता गई सुरति गई सुगंध गई।  

राम पीछे -पीछे दौड़ रहें हैं मृगछौनाओं के। राम संतों सन्यासियों के दर्शन कर बहुत आनंदित हैं यहां वन प्रांतरों में सरोवर हैं उनमें में राजहंस हैं । और सहसा राम चकित से रह गए एक आश्रम को देखकर। अभी तक तो राम बहुत आह्लादित थे। लेकिन एक आश्रम ये इतना  सूना है यहां सरोवर तो  है  उसमें नीर नहीं है । आश्रम में एक भी  पंछी परिंदा वृक्ष नहीं है और एक शिला है जो सिसक रही है। रो रही है। राम परेशान है शिला कैसे रो सकती है सिसक सकती है ,पत्थर को आंसू कैसे आ सकते हैं ? 

आश्रम एक ,देख मग माहिं  

खग मृग जीव  जंतु तहँ  नाहिं ,

पूछा मुनि शिला एक देखि ,

सकल कथा मुनि कही विशेषी। 

यही तो शाप दिया था गौतम ने। और इसीलिए यहां वनस्पति नहीं हैं सुगन्धि नहीं हैं जीव जंतु नहीं हैं। 

कृन्दन चीत्कार करती रहना जो तूने वृक्ष लगाए हैं फलदार सब ठूंठ बन जाएंगे। जिन पंछियों को रोज़ चुगना देती है कभी नहीं आएंगे अब लौटके । तू शिला बनके यहां अकेली सिसकती रहना धूप में तप्ती रहना। तू देखने में तो चट्टान जैसे दिखेगी लेकिन तेरी सारी  संवेदनाएं मानुषी जैसी ही रहेंगी मानवीय ही रहेंगी।  तू धूप में तप्ती रहना वर्षा में भीगती रहना।ओस और धूप तेरी त्वचा को झुलस देंगे।  अपनों को ऐसा शाप देना इतना दुःख देना।इतना दुःख देता है कोई अपनों को। यही तो किया था गौतम ने। 

अहिल्या ने बहुत कहा मैं निरपराध हूँ निर्दोषी हूँ। वह हठी है -योगी। गौतम ने कुछ सुना ही नहीं वो कहने लगे -तुझे परपुरुष का स्पर्श ही नहीं पता चला यह कैसे हो सकता है ?अनिंद्य है अहिल्ल्या। 

अहिल्ल्या निर्गन्धा थी जिसने अपनी लालसाओं को कामनाओं को अपने वश में कर लिया था ।एक अलग ही ओज था उनमें। इसीलिए इंद्र भी उन पर मोहित था।

मनुष्य की तीन प्रकार की एषणाएँ हैं :

(१ )वित्तेषणा 
(२ )पुत्रेष्णा 
(३ )लोकेषणा 

अहिल्या ने तीनों को जीत लिया था। अनिंद्य सनातन सतोगुणी सौंदर्य था उनमें। जिसने अपनी एषणाओं को जीत लिया है उसके द्वार पर देवता दौड़े चले आते हैं। सिद्धियां उसका द्वार खटखटाने लगतीं हैं। अहिल्या ने काम जीत लिया था। पर -पुरुष का कभी ध्यान नहीं करतीं थीं अहिल्या। वो चाहिए भी नहीं। 
काम का अर्थ कुछ इन्द्रियों की गुदगुदी नहीं है। संसार की सब सुखद वांछाओं का नाम काम है। तो किसी ने इन्हें नियंत्रित कर लिया ,बड़ा सुन्दर लगता है वह आदमी। उसमें बड़ा आकर्षण आ जाता है बड़ा मोहक लगता है वह आदमी।

एक अलग प्रकार का विमोहन रहता है उसमें सब खींचे चले आते हैं। इंद्र ने एक बार उन्हें देखा तो सभी शची ,अप्सराएं उनके सामने लज्जित होने लगीं।

इंद्र का षड्यंत्र छलकपट मायाजाल 

 चाकर से कहा चंद्र से तू मेरा साथ दे। अर्द्ध रात्रि में कुकुट्ट बनकर मुर्गा बनकर बांग दे। भोर के स्वर पैदा करना मुर्गा बनकर। ऋषि की आँख खुल जायेगी। 

और ऐसा ही हुआ। और बड़े लज्जित हुए ऋषि। जानते हो कब लज्जित होता है ऋषि जब पूजा न कर पाए ,माला न फेर पाए।  नित्य नैमित्तिक पाठ न कर पाए। गौ ग्रास न निकाल पाए। जो सात्विक नियम हैं जब उनका निर्वहन नहीं होता अपराध बोध सालता है वह गिल्ट कुछ और किस्म की गिल्ट है। 

अरे !आज मेरी आँख क्यों नहीं खुली ,मैंने ऐसा रात  को क्या खा लिया ,किसका संग साथ कर लिया जो ब्रह्म मुहूर्त में  मेरी निद्रा न खुली।मैंने कौन सी ऐसी बात सोची है रात भर जो मेरी आँख नहीं खुली। हड़बड़ा कर उठे गौतम और एक वस्त्र लेकर  गंगा की ओर  भागे। 

और वैसे ही  गौतम की  कुटिया में इंद्र आये - वैसा ही उनका रूप आकृति ,वैसी ही भाषा   .छद्म गौतम बन गए इंद्र।

उन्होंने आवरण भंग किया। ,अपना कोई आवरण भंग करेगा तो कैसे करेगा। 'काम' योग का नाम है। भोजन लेना योग है। भोजन में भी जल में भी संयम शान्ति रखना है ,जल  चबाया जाए, औषधि बन जाएगा। हड़बड़ी में ध्यान कहीं और है बुद्धू बक्सा सामने है भोजन कर रहे हैं। ये भोग हो गया। निद्रा योग का नाम है सांस लेना भी योग का नाम है। 

गौतम मुख  पर से आवरण कैसे भंग करेंगे -जिस तरह से छद्म गौतम ने आवरण भंग किया वह सहम गईं उठके बैठ गईं और जिस वक्त इंद्र ने उनका हाथ छूआ उनके सारे शरीर में अग्न दौड़ ने  लगी। 

उधर गंगा किनारे गौतम को लगा कोई छल  हुआ है चन्द्रमा धीरे से प्रकट हो रहा है मुर्गे में से और इंद्र हाथ छू रहा है अहिल्या का  -

सहसा स्वामी पति गौतम द्वार पर -वह नैनों में गौतम के देख कर पहचान गईं अपने स्वामी को।  

इंद्र के हाथ में कम्पन है।अब तेरा इन्द्रत्व गया। कोई नहीं बचा सकता ऋषि कोप से। 

 इंद्र तू कोढ़ी हो जाएगा तेरे सारे अंग गल- गल कर गिरेंगे-गौतम शाप देते हैं।  

क्रोध से मारक कोई और हिंसा नहीं है। स्त्री पर जो स्वामित्व है यह  पशु भाव है आपका -यह मेरे अधीन हैं वैसे ही नाँचेगी जैसे मैं चाहूँ। जब आप वर्चस्व के अधिकार में हैं और इसे कोई छीन रहा है भीतर का  पशु जग जाता है तब । गौतम ने इतना  भयानक शाप दे डाला। वे शाप देते जा रहें हैं अहिल्या चीखती जा रही हैं । वह कहती है मैं सब सह लूंगीं मेरा त्राण का उपाय भी तो करो ये कौन बताएगा स्वामी मैं  पवित्र हूँ। कौन प्रमाणित करेगा मैं निर्दोष हूँ। आप तो मानते नहीं। 

पति तो पवित्रता का प्रमाण माँगता है। कौन प्रमाणित करेगा के मैं पवित्र हूँ मेरा उद्धार कौन करेगा।तब सहसा उनके भीतर की करुणा जगी और वह यह कह गए - 

जब इस गली से राम निकलेंगे तो उनका ध्यान तेरी तरफ जाएगा। ईश्वर ही प्रमाणित कर सकता है हमारी निरपराधता को। बरसों से भीगती वह शिला -जब राम उधर से गुज़रे उनका ध्यान गया उस पर -चट्टान सिसक रही है। 

गुरु ने कहा  यह गौतम नारी है आपके चरण की रज चाहतीं है। गुरु की आज्ञा है राम सकुचाते हैं यह ब्राह्मणी है मैं चरण रज कैसे डालूँ। 

मेरी आज्ञा है उठा अपना पैर कहा  गुरुदेव ने -और जैसे ही भगवान के चरणों की धूल गिरी वह शिला कल्याणी हो गई। वह पाषाणी कल्याणी हो गई। 

गौतम नारी शाप वश उपल देह  धर -धीर ,

चरण कमल रज चाहती कृपा करो रघुवीर। 

अति प्रेम अधीरा -

राम ने कहा तो पूज्या है पवित्रा है ,पतिव्रता है। मैं प्रमाणित करता हूँ और जा -तू निर्वाण को उपलब्ध होगी। उसने कहा न मुझे तेरा धाम भी नहीं चाहिए मुझे मेरा पति जैसा भी है उसका साथ चाहिए -वे तिल - तिल मर रहें होंगे उन्होंने कभी इससे पहले क्रोध नहीं किया था। क्रोध के बाद खुद का पता नहीं रहता व्यक्ति बिखर जाता है। क्रोध के बाद फिर से पूरा अपने को समेट भी नहीं पाता। क्रोध विजातीय है वह भीतर रहना भी नहीं चाहता। कोई चोबीस घंटों रह कर दिखाए क्रोध में। 

प्रेम में व्यक्ति 24 x 7 रह सकता है क्रोध में नहीं भले वर्ल्ड रिकार्ड बना के दिखाए कोई । स्त्री के सकल व्रत का फल अन्य को मिलता है उसके परिवार को भाई को पुत्र को ,पति को मिलता है। यह भारत की नारी ही  है। जो भगवान् से भी अपनों का सुख मांगती है स्वयं का मोक्ष नहीं।   

 और फिर अति आद्र होकर अहिल्या ने कहा था -स्वामी मुझे मेरी मुक्ति का तो मार्ग बता दो। 

दिन भर कोई आपसे न बोले तो पत्थर जैसे हो जाओगे। बुत बन जाओगे।प्रेम अपनों से चाहिए दूसरों से नहीं। संवेदनाएं  अपनों  से ही  चाहिए। दर्द भी हमारे अपनों से हैं। हमारी कोई प्रसन्नता है तो अपनों से है। दुःख दर्द में अपने ही याद आते हैं।     

 सन्दर्भ -सामिग्री :


(१)LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 28th Dec 2015 || Day 3
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