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अव्यक्तोक्षर इत्युक्तस्तमाहु : परमां गतिम् गतिम् | यं प्राप्य : न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||

अव्यक्तोक्षर  इत्युक्तस्तमाहु : परमां  गतिम् गतिम् |  यं प्राप्य :  न  निवर्तन्ते  तद्धाम परमं मम ||  उसी को अव्यक्त और अक्षर -ऐसा कहा गया है तथा उसी को परमगति कहा गया है और जिसको प्राप्त होने पर जीव फिर लौटकर संसार में नहीं आते ,वह मेरा परमधाम है।  व्याख्या :वास्तव में परमात्म तत्व वर्णनातीत है | अव्यक्त ,अक्षर ,परमगति आदि नाम उस तत्व का संकेत मात्र  करते हैं ; क्योंकि वह अव्यक्त -व्यक्त ,अक्षर -क्षर ,गति -स्थिति आदि से रहित निरपेक्ष तत्व है। उसे प्राप्त होने पर जीव लौटकर संसार में नहीं आता। कारण की जीव  उ स  परमात्म तत्व  का सनातन अंश होने से उससे अलग नहीं है। संसार में तो वह भूल से अपने को स्थिर मानता है। वास्तव में शरीर ही संसार में स्थित है ,स्वयं नहीं।  पुरुष : स पर : पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |  यस्यांत : स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततं।  हे पृथानन्दन अर्जुन !सम्पूर्ण प्राणी जिसके अंतर्गत हैं और जिससे यह सम्पूर्ण संसार  व्याप्त है ,वह परम पुरुष परमात्मा तो अनन्य भक्ति से...

सनातन क़साई बनाम कुत्ताए लोग

सनातन क़साई बनाम  कुत्ताए लोग यूं स्वान (कुत्ता जी )हमारे पर्यावरण का हिस्सा नहीं रहा है लेकिन इस मामले में गोरों की तारीफ़ करनी पड़ेगी जिनके घर के बाहर लिखा होता है। माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। ये लोग अपने पैट को डायपर तो नहीं पहनाते लेकिन उसका मलमूत्र ,एक्स्क्रीटा पूपर स्कूपर से खुद उठाकर उसका निपटान करते हैं। इलाज़ मुहैया होता  उनके पैट को डायबिटीज से लेकर कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग तक. हमारे अमीरज़ादे पैट को इलाज़ तो  मुहैया करवाते हैं लेकिन आसपास के पर्यावरण को गंधाते है -दिल्ली का सबसे लोकप्रिय पार्क लोदी   गार्डन भी इनके लाडलों के मलमूत्र से गंधाता है। जगह जगह  डॉग एक्स्क्रीटा आपको परेशान करेगा। इफ दी डॉग   बिलोंग्स ट यू ,सो डज़ हिज एक्स्क्रीटा। लेकिन ये कुत्ताए लोग इसकी अनदेखी करते हैं। गंधा रखा  इन्होनें कॉलोनी मोहल्लों पार्कों को। आइये अब भारतीय नस्ल की गाय की बात की जाए विदेशी जिसका मूत्र आयात करते हैं दवा निर्माण के लिए। गौ रेचन (गाय के कान का मैल )मीग्रैन में रामबाण है। तो पंचगव्य यज्ञ को सम्पूर्णता प्रदान करता है। गा...

लातों के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों या बाहर से।

 लातों  के भूत बातों से नहीं मानते चाहे फिर वे अंदर से देश को तोड़ने वाले हों  या  बाहर से। मणिशंकर सोच और प्रजाति  के पढ़े लिखे गंवार इतना भी नहीं जानते। ये मूढ़मति स्मृति भ्रंश भूल गए बाजपेयीजी की  सदाशयता ,लाहौर बस यात्रा ,आगरा संवाद और कारगिल। ये टुकड़खोर स्वनामधन्य आईएएस खाता इस देश का है ढपली  पाकिस्तान  की बजाता है। ये साहित्य उत्सव  करांची का इस्तेमाल भारत निंदा के लिए करते हुए ज़रा भी नहीं लजाते ,सिद्ध होता है ये पक्के कांग्रेसी सोनिया शुक हैं।