सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं ( ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM ) ,II PART

हिंदुत्व :कुछ मूल भूत अवधारणाएं  ( ETERNAL ESSENTIAL HINDUISM )(Cont... )

PRAYERS FOR THE WELL BEING OF ALL 

सबके सुख की कामना ,प्रार्थना करता है हिंदुत्व उस परमप्रभु से :

सर्वेपि सुखिन : सन्तु 

परमात्मा से प्रार्थना है सब खुश रहें ,आनंद -बदन रहें। 

HARMONY AT ALL LEVELS OF EXISTENCE 

Perfecting the individual ,then family ,then the universe itself.

यानी पहले स्व : का कल्याण हो व्यक्ति अपने निज स्वरूप आत्मन को पहचाने। उसका लक्ष्य क्या है ,समझे तदनुरूप आचरण करे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। 

स्व : की पूर्णता के बाद स्व : के पूर्णकाम आप्तकाम होने के बाद परिवार इस दिशा में अग्रसर हो और अनन्तर सृष्टि को इसी दिशा में ले जाया जाए।

SECTS 

मुख्या तय चार सम्प्रदाय हैं हिन्दुइस्म के अंतर्गत माने गए हैं :

शिव को मान ने वाले 'शैव' ,शक्ति की उपासना अर्चना  करने वाले 'शाक्त ' ,विष्णु उपासक यानी 'वैष्णव सम्प्रदाय'। तथा 'Smartism' यानी पंचदेव पूजक। 

Smartism is a sect of Hinduism that allows its followers to worship more than one god, unlike in sects like Shaivism and Vaishnavism, in which only Shiva and Vishnu are worshipped, respectively.

यानी बहुदेव उपासक हैं इस सम्प्रदाय के लोग इस सम्प्रदाय के अनुयायी कोई किसी को भी भजे पूजे कोई पाबंदी नहीं। 

पंचायतन भी कहलाते  हैं इस सम्प्रदाय के समर्थक क्योंकि ये पांच देवों विष्णु ,शिव ,गणेश ,सूर्य और शक्ति में से किसी को भी पूज सकते हैं।

Hinduism accepts all genuine spiritual paths -from pure monism (एक देववाद या एक ईश्वर को मानने वाले )(God alone exists )to theistic dualism (when shall I know His grace ?).Each soul is free to find his own way ,whether by devotion ,austerity ,meditation (yoga )or selfless service . 

अगर आप किसी भी देवता को नहीं मानते न एक देव न बहुदेव पूजक हैं  नास्तिक हैं आप तब भी यहां हिन्दू ही हैं। 

अलबत्ता मंदिर में जाकर पूजा -अर्चना करना ,आध्यात्मिक ग्रंथों का अनुशीलन करना ,गुरु -शिष्य परम्परा के अंतर्गत अपने निज स्वरूप को पहचान ने के लिए गुरु  के शरणागत होना हिंदुत्व में महत्वपूर्ण माना गया है अपने आत्मिक उद्धार के लिए। 

 उत्सव- धर्मिता ,तीर्थ स्थानों का भ्रमण ,मंत्र जाप ,पूजा अर्चना घर में ही  नियमित रूप से करना हिंदुत्व की गत्यात्मक अवधारणाएं रहीं हैं।हमारे जड़त्व को तोड़ने में इनकी विधायक भूमिका समझी गई है। 

प्रेम ,अहिंसा ,सौहाद्र ,आचरण की शुचिता मन क्रम वचन से ,सबके प्रति सद्भावना रखना बनाये रखना कठिन परिश्थितियों में भी हिंदुत्व की आत्मा समझी गई है। 

हिंदुत्व के अंतर्गत ऐसा समझा जाता है की हमारी शेष कामनाएं ही हमें  इस संसार चक्र में बार बार ले आती हैं :

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

पूर्णकाम आप्त काम व्यक्ति जिसकी कोई कामना शेष नहीं रह जाती इस चक्र से बाहर आ जाता है अलबत्ता परमात्मा हर प्रकार की कामना को पूर्ण करने का अवसर बार-बार देता है जब तक के आप निष्काम न हो जाएँ। कामना मुक्त न हो जाएँ। 

Hiduism explains that the soul re-incarnates until all accumulated karma are resolved and God realization is attained . 

हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं गीता में निष्काम कर्म की चर्चा पूर्णकाम(आप्त काम ) होने के लिए ही की गई है। जब तक कर्मफल आसक्ति बनी हुई हैं कामनाएं शेष हैं संसार चक्र से मुक्ति नहीं है। बस आते रहो माँ के गर्भ में जाते रहो एक से दूसरे  शरीरों में यौनियों  में। 

हमारे कर्म तीन प्रकार के बतलाये गए हैं :

'संचित -कर्म' :हमारे अनंत कोटि पूर्व जन्मों के कर्मफलों का जमा जोड़ हैं। 

'प्रारब्ध -कर्म 'इन्हीं संचित कर्मों का एक अंश हैं जिनके साथ हम पैदा होते हैं। 

तथा 'आगम -कर्म 'वर्तमान में किये  गए क्रियमाण  कर्मों में से वे कर्म हैं जिनका फल हम को  इस जन्म में नहीं मिला है आगे जाकर कभी मिलेगा। अगले जन्मों में से किसी में। अलबत्ता कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता है ये करूँ या वो करूँ। 

(ज़ारी )









टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : | न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : |  न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||   सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.facebook.com/watch/?v=2773670096064129 भारतीय राजनीति के राहु मास्टर राहुल की आज यही नियति है ,उम्र इक्यावन मेधा बालवत। इनका कद ग्रुप आफ ट्वेंटी थ्री (गुलाम नबी आज़ाद साहब, कपिल सिब्बल साहब ,मनीष तिवारी जैसी समृद्ध परम्परा के धनी - मानी व्यक्तियों के बीच आज वैसे ही निस्तेज है जैसे हंसों के बीच बगुला ,कोयलों के बीच कागा ). जैसा बीज वैसा फल आज न इन्हें भारतीय इतिहास की जानकारी है न भूगोल की ,इनकी अम्मा आज भी हिंदी रोमन लिपि में लिखती पढ़ती हैं। देश में २०१९ से एक मत्स्य मंत्रालय भी है इन्हें इसका इल्म  नहीं है ?ये गांधी किस  बिना पे हैं जबकि इनके दादा फ़िरोज़ खान थे -पूछ देखो ,बगलें झाँकने लगेगा यह इक्यावनसाला बालक।   इन्हें अपने  खानदान अपनी ही जड़ों का बोध  नहीं है उत्तर दक्षिण का यह मतिमंद बालक  - विभेद अपनी विभेदन -शीला विखण्डनीय   बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आज बतला रहा है। यकीन तो करना ही होगा।  ...

FDA strengthens warning on opioid cold medicine(HINDI )

JAN 12 FDA strengthens warning on opioid cold medicine(HINDI ) यह आकस्मिक नहीं है गत एक पखवाड़े में अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था एफडीए ने आग्रहपूर्वक इस चेतावनी को दोहराया है ,बलपूर्वक सिफारिश भी की है के आइंदा केवल अठारह साल से ऊपर आयुवर्ग को ही सर्दीजुकाम फ्ल्यू में दी जाने वाली उन दवाओं को दिया जाए नुश्खे में लिखा जाए जो ओपिऑइड्स युक्त हैं। कुछ दवाओं के नाम भी गिनाये हैं जिनमें कोडीन ,हाइड्रोकोडॉन ,ट्रामाडोल आदि शामिल हैं।  किसी भी आयुवर्ग के बालकों के लिए इन दवाओं के इस्तेमाल से  नुकसानी  फायदे से बहुत ज्यादा उठानी पड़  सकती है।लत पड़ जाती है इन दवाओं की  और बच्चे जल्दी ही इन दवाओं के अभ्यस्त हो सकते हैं दुरूपयोग  हो सकता है इन दवाओं का ओवर डोज़ भी ली जा सकती है जिससे अमरीका भर में बेशुमार मौतें आदिनांक हो चुकीं हैं यहां तक के अंगदान बे -हिसाब हुआ है। ऑर्गन डोनर्स जैसे बारिश में गिरे हों। क्योंकि ये शव हैं उन देने वालों के  जो   कथित वैध -ओपिऑइड्स दवाओं की ओवरडोज़ के ग्रास बने। दरअसल ओपिऑइड्स (मार्फीन जैसे पदार्...

सरगुन की कर सेवा ,निर्गुण का कर ज्ञान। सरगुन निर्गण ते (से )परे तहाँ हमारा ध्यान।

सरगुन की कर सेवा ,निर्गुण का कर ज्ञान।  सरगुन निर्गण ते (से )परे तहाँ हमारा ध्यान। कबीर कहते हैं हे मनुष्य तेरे बाहर सरगुन(सगुण ) है भीतर निर्गुण है। सब प्राणी सरगुन भगवान् है। चेतना का दीपक अंदर जल रहा है वह निर्गुण है। नर नारायण रूप है इसे देह मत समझ देह तो मिट्टी का खोल है। कबीर जेते  आत्मा  ,तेते शालिग्राम। कबीर कहते हैं अर्थात जितने भी प्राणी है सब भगवान हैं   कबीर कहते हैं सगुन की सेवा करो निर्गुण का ज्ञान प्राप्त करो लेकिन हमारा ध्यान दोनों से परे होना चाहिए सरगुन श्रेष्ठ है या निर्गुण इस फ़िज़ूल बात में नहीं उलझना है।  सारा सृजन मनुष्य करता है ज्ञान विज्ञान का रचयिता वह स्वयं  है। देवताओं को उसने ही बनाया है वेदों की प्रत्येक ऋचा के साथ उसके ऋषि का नाम है छंद का नाम है। किताब ,किसी भी धार्मिक किताब (कतैब )का रचयिता भगवान नहीं है सारे देवता मनुष्य ने बनाये हैं उसी की कल्पना से उद्भूत हुए हैं यह ज्ञान है। इसे ही समझना है।  आज जो देवी देवता पूजे जाते हैं वह वैदिक नहीं हैं। राम ,कृष्ण ,गणेश आदिक इनका कहीं उल्लेख नहीं...