जैसे -जैसे पांच अगस्त का शुभ दिन पास आ रहा है भारत राममय हो उठा है।कलाकृतियां श्रृद्धा का उद्वेलन हैं आलमी मेले का माहौल बन रहा है। भाग्य श्री -धनश्री वाटकर किशोरियां मानों लव कुश के नवावतार में स्वर माधुरी लिए चली आईं हैं आप भी रामभक्ति सरोवर का अवगाहन कीजिये गोता लगाइये सरयू में स्वरसाधना में :
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।
जम्बूद्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते भारतवर्षे ,
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की,
यही जन्मभूमि है परम् पूज्य श्री राम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।.
रघुकुल के राजा धर्मात्मा ,
चक्रवर्ती दसरथ पुण्य आत्मा ,
संतति हेतु यज्ञ करवाया ,
धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया।
नृप घर जन्मे चार कुमारा ,
रघुकुल दीप जगत आधारा ,
चारों भ्रातों के शुभ नामा ,
भरत ,शत्रुघ्न ,लक्ष्मण रामा। .
गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके ,
'अल्पकाल विद्या सब पाके ,
पूरण हुई शिक्षा ,रघुवर पूरण काम की ,
हमकाथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।.
मृदु स्वर कोमल भावना ,
रोचक प्रस्तुति ढंग ,
एक एक कर वर्रण करें ,
लव कुश राम प्रसंग ,
विश्वामित्र महामुनि राई ,
तिनके संग चले दोउ भाई ,
कैसे राम ताड़का मारी ,
कैसे नाथ अहिल्या ताड़ी।
मुनिवर विश्वामित्र तब ,
संग ले लक्ष्मण राम ,
सिया स्वयंवर देखने ,
पहुंचे मिथिला धाम। .
जनकपुर उत्सव है भारी ,
जनकपुर उत्सव है भारी ,
अपने वर का चयन करेगी, सीता सुकुमारी ,
जनकपुर उत्सव है भारी ।
https://www.youtube.com/watch?v=JWPyJMfTa6o
राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।
"हम चाकर रघुवीर के, पटौ लिखौ दरबार;
अब तुलसी का होहिंगे नर के मनसबदार?
तुलसी अपने राम को रीझ भजो कै खीज,
उलटो-सूधो ऊगि है खेत परे को बीज।
बनें सो रघुवर सों बनें, कै बिगरे भरपूर;
तुलसी बनें जो और सों, ता बनिबे में धूर।
चातक सुतहिं सिखावहीं, आन धर्म जिन लेहु,
मेरे कुल की बानि है स्वाँति बूँद सों नेहु।"
स्वयं तुम्हारा वह कथन भूला नहीं ललाम-
"वहाँ कल्पना भी सफल, जहाँ हमारे राम।"
तुमने इस जन के लिए क्या क्या किया न हाय!
बना तुम्हारी तृप्ति का मुझसे कौन उपाय?
तुम दयालु थे, दे गए कविता का वरदान।
उसके फल का पिंड यह लो निज प्रभु गुणगान।
आज श्राद्ध के दिन तुम्हें, श्रद्धा-भक्ति-समेत,
अर्पण करता हूँ यही निज कवि-धन 'साकेत'।
अनुचर-
मैथिलीशरण
दीपावली 1988
"परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्म संस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे युगे।"
"कल्पभेद हरि चरित सुहाए,
भांति अनेक मुनीसन गाए।"
"हरि अनंत, हरि कथा अनंता;
कहहिं, सुनहिं, समुझहिं स्रुति-संता।"
"रामचरित जे सुनत अघाहीं,
रस विसेष जाना तिन्ह नाहीं।"
"भरि लोचन विलोकि अवधेसा,
तब सुनिहों निरगुन उपदेसा।"
करते तुलसीदास भी कैसे मानस-नाद?--
महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद।
राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?
विश्व में रमे हुए नहीं सभी कहीं हो क्या?
तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे;
तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे
----------------- मैथलीशरण गुप्त ( साकेत से कुछ अंश )
वीरुभाई !
https://www.youtube.com/watch?v=tGz_1vp0Qwk
#watkarsisters
https://www.youtube.com/watch?v=tGz_1vp0Qwk
#SanskarTV #WatkarSisters #BhagyashriDhanashriWatkar
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।
जम्बूद्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते भारतवर्षे ,
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की,
यही जन्मभूमि है परम् पूज्य श्री राम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।.
रघुकुल के राजा धर्मात्मा ,
चक्रवर्ती दसरथ पुण्य आत्मा ,
संतति हेतु यज्ञ करवाया ,
धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया।
नृप घर जन्मे चार कुमारा ,
रघुकुल दीप जगत आधारा ,
चारों भ्रातों के शुभ नामा ,
भरत ,शत्रुघ्न ,लक्ष्मण रामा। .
गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके ,
'अल्पकाल विद्या सब पाके ,
पूरण हुई शिक्षा ,रघुवर पूरण काम की ,
हमकाथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।.
मृदु स्वर कोमल भावना ,
रोचक प्रस्तुति ढंग ,
एक एक कर वर्रण करें ,
लव कुश राम प्रसंग ,
विश्वामित्र महामुनि राई ,
तिनके संग चले दोउ भाई ,
कैसे राम ताड़का मारी ,
कैसे नाथ अहिल्या ताड़ी।
मुनिवर विश्वामित्र तब ,
संग ले लक्ष्मण राम ,
सिया स्वयंवर देखने ,
पहुंचे मिथिला धाम। .
जनकपुर उत्सव है भारी ,
जनकपुर उत्सव है भारी ,
अपने वर का चयन करेगी, सीता सुकुमारी ,
जनकपुर उत्सव है भारी ।
https://www.youtube.com/watch?v=JWPyJMfTa6o
राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।
"हम चाकर रघुवीर के, पटौ लिखौ दरबार;
अब तुलसी का होहिंगे नर के मनसबदार?
तुलसी अपने राम को रीझ भजो कै खीज,
उलटो-सूधो ऊगि है खेत परे को बीज।
बनें सो रघुवर सों बनें, कै बिगरे भरपूर;
तुलसी बनें जो और सों, ता बनिबे में धूर।
चातक सुतहिं सिखावहीं, आन धर्म जिन लेहु,
मेरे कुल की बानि है स्वाँति बूँद सों नेहु।"
स्वयं तुम्हारा वह कथन भूला नहीं ललाम-
"वहाँ कल्पना भी सफल, जहाँ हमारे राम।"
तुमने इस जन के लिए क्या क्या किया न हाय!
बना तुम्हारी तृप्ति का मुझसे कौन उपाय?
तुम दयालु थे, दे गए कविता का वरदान।
उसके फल का पिंड यह लो निज प्रभु गुणगान।
आज श्राद्ध के दिन तुम्हें, श्रद्धा-भक्ति-समेत,
अर्पण करता हूँ यही निज कवि-धन 'साकेत'।
अनुचर-
मैथिलीशरण
दीपावली 1988
"परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्म संस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे युगे।"
"कल्पभेद हरि चरित सुहाए,
भांति अनेक मुनीसन गाए।"
"हरि अनंत, हरि कथा अनंता;
कहहिं, सुनहिं, समुझहिं स्रुति-संता।"
"रामचरित जे सुनत अघाहीं,
रस विसेष जाना तिन्ह नाहीं।"
"भरि लोचन विलोकि अवधेसा,
तब सुनिहों निरगुन उपदेसा।"
करते तुलसीदास भी कैसे मानस-नाद?--
महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद।
राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?
विश्व में रमे हुए नहीं सभी कहीं हो क्या?
तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे;
तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे
----------------- मैथलीशरण गुप्त ( साकेत से कुछ अंश )
वीरुभाई !
https://www.youtube.com/watch?v=tGz_1vp0Qwk
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