जिस कउ राखै सिरजनहारू। झख मारउ सगल संसारु।। (आदि श्री गुरुग्रंथ साहब ,गोंड महला पांच )
संत का लीआ धरति बिदारउ। संत का निंदकु अकास ते टारउ। संत कउ राखउ अपने जीअ नालि। संत उधारउ तत खिण तालि | | १ | | सोई संतु जि भावै राम। संत गोबिंद कै एकै काम। || १ | | रहाउ | | संत कै ऊपरि देई प्रभु हाथ। संत कै संगि बसै दिनु राति। सासि सासि संतह प्रतिपालि। संत का दोखी राज ते टालि | | २ | | संत की निंदा करहु न कोइ। जो निंदै तिस का पतनु होइ। जिस कउ राखै सिरजन हारु। झख मारउ सगल संसारु | | ३ | | प्रभ अपने का भइआ बिसासु। जीउ पिंडु सभु (मू ० ८६७ /६८ )तिसकी रासि। नानक कउ उपजी परतीति। मनमुख हार गुरमुख सद जीति | | ४ | | १६ | | १८ | |
संतों द्वारा तिरस्कृत जीव धरती पर रहने के योग्य नहीं है। संतों की निंदा करने वाले को आकाश से गिरा दिया जाना चाहिए। संतों का नाम अपने प्राणों के साथ रखा जाना चाहिए ,क्योंकि संतों की कृपा हो जाए तो क्षण भर में ही जीव का उद्धार हो सकता है।१।
संत वही है जो प्रभु को प्रिय हो ,जो प्रभु का प्रिय हो; वास्तव में संत और परमात्मा का एक ही काम है अर्थात हरि और संत में अभेद होता है।| (१ ) |
संत मिलें तो मैं मिल जाऊं संत न मोते न्यारे (उधौं मोहे संत सदा अति प्यारे। ...)
संतों को परमात्मा का वरद हस्त ,संरक्षण प्राप्त होता है। इसीलिए दिन रात उन्हीं के संग रहना समीचीन (ठीक )है। परमात्मा श्वास -श्वास संतों का पालन करता है। संतों को कष्ट पहुंचाने वाला अपनी प्रभुसत्ता (राजपाट )खो बैठता है। | | २ | |
ऐ लोगों , संतों की निंदा मत करो ,निंदा करने वाले का पतन निश्चित होता है। (हालांकि संत ही कह गए हैं :
निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ,
बिन साबुन पानी बिना निर्मल होय सुभाय !
संत निंदा प्रशंशा दोनों से ऊपर होते हैं। कुछ तो निंदक को अपना सबसे बड़ा मित्र समझते हैं। संत चरण दास कहते हैं :
साधो निंदक मित्र हमारा।
निंदक को निकटै ही राखूं होन न दें नियारा।
पाछे निंदा करि अघ धोवै, सुनि मन मिटै बिकारा।
जैसे सोना तापि अगिन मैं, निरमल करै सोनारा॥
घन अहरन कसि हीरा निबटै, कीमत लच्छ हजारा।
ऐसे जांचत दुष्ट संत कूं, करन जगत उजियारा॥
जोग जग्य जप पाप कटन हितु, करै सकल संसारा।
बिन करनी मम करम कठिन सब, मेटै निंदक प्यारा।
सुखी रहो निंदक जग माहीं, रोग न हो तन सारा।
हमरी निंदा करने वाला, उतरै भवनिधि पारा॥
निंदक के चरणों की अस्तुति, भाखौं बारंबारा।
'चरणदास' कहै सुनिए साधो, निंदक साधक भारा॥
वह परमात्मा जिसका रक्षक है ,सारा संसार चाहे झख मार ले ,उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। || 3 | |
होनी तो होके रहे लाख करे किन कोय।
जाकू राखै साईंयां मार सके न कोय।
फ़ानूस बन जिसकी हिफाज़त हवा करे ,
वो शम्म -अ क्या बुझे रोशन जिसे ख़ुदा करे।
फ़ानूस :शैंडेलियर्स ,Chendelliars ,Lamp shades
अपने प्रभु पर जब विश्वास जगता है ,तो जीवन तन मन को उसी की धरोहर मानकर उसी पर समर्पित कर देता है। गुरुनानक का विश्वास है ,परमात्मा को समर्पित हो जाने वाला गुरुमुख सदा विजयी होता है ,मन के संकेतों पर आचरण करने वाला मन की मानने वाला मनमुख जीव जीवन में पराजित हो जाता है।
https://www.youtube.com/watch?v=lYsA9v_iC34
सत श्री अकालजियो !
संत का लीआ धरति बिदारउ। संत का निंदकु अकास ते टारउ। संत कउ राखउ अपने जीअ नालि। संत उधारउ तत खिण तालि | | १ | | सोई संतु जि भावै राम। संत गोबिंद कै एकै काम। || १ | | रहाउ | | संत कै ऊपरि देई प्रभु हाथ। संत कै संगि बसै दिनु राति। सासि सासि संतह प्रतिपालि। संत का दोखी राज ते टालि | | २ | | संत की निंदा करहु न कोइ। जो निंदै तिस का पतनु होइ। जिस कउ राखै सिरजन हारु। झख मारउ सगल संसारु | | ३ | | प्रभ अपने का भइआ बिसासु। जीउ पिंडु सभु (मू ० ८६७ /६८ )तिसकी रासि। नानक कउ उपजी परतीति। मनमुख हार गुरमुख सद जीति | | ४ | | १६ | | १८ | |
संतों द्वारा तिरस्कृत जीव धरती पर रहने के योग्य नहीं है। संतों की निंदा करने वाले को आकाश से गिरा दिया जाना चाहिए। संतों का नाम अपने प्राणों के साथ रखा जाना चाहिए ,क्योंकि संतों की कृपा हो जाए तो क्षण भर में ही जीव का उद्धार हो सकता है।१।
संत वही है जो प्रभु को प्रिय हो ,जो प्रभु का प्रिय हो; वास्तव में संत और परमात्मा का एक ही काम है अर्थात हरि और संत में अभेद होता है।| (१ ) |
संत मिलें तो मैं मिल जाऊं संत न मोते न्यारे (उधौं मोहे संत सदा अति प्यारे। ...)
संतों को परमात्मा का वरद हस्त ,संरक्षण प्राप्त होता है। इसीलिए दिन रात उन्हीं के संग रहना समीचीन (ठीक )है। परमात्मा श्वास -श्वास संतों का पालन करता है। संतों को कष्ट पहुंचाने वाला अपनी प्रभुसत्ता (राजपाट )खो बैठता है। | | २ | |
ऐ लोगों , संतों की निंदा मत करो ,निंदा करने वाले का पतन निश्चित होता है। (हालांकि संत ही कह गए हैं :
निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ,
बिन साबुन पानी बिना निर्मल होय सुभाय !
संत निंदा प्रशंशा दोनों से ऊपर होते हैं। कुछ तो निंदक को अपना सबसे बड़ा मित्र समझते हैं। संत चरण दास कहते हैं :
साधो निंदक मित्र हमारा।
निंदक को निकटै ही राखूं होन न दें नियारा।
पाछे निंदा करि अघ धोवै, सुनि मन मिटै बिकारा।
जैसे सोना तापि अगिन मैं, निरमल करै सोनारा॥
घन अहरन कसि हीरा निबटै, कीमत लच्छ हजारा।
ऐसे जांचत दुष्ट संत कूं, करन जगत उजियारा॥
जोग जग्य जप पाप कटन हितु, करै सकल संसारा।
बिन करनी मम करम कठिन सब, मेटै निंदक प्यारा।
सुखी रहो निंदक जग माहीं, रोग न हो तन सारा।
हमरी निंदा करने वाला, उतरै भवनिधि पारा॥
निंदक के चरणों की अस्तुति, भाखौं बारंबारा।
'चरणदास' कहै सुनिए साधो, निंदक साधक भारा॥
वह परमात्मा जिसका रक्षक है ,सारा संसार चाहे झख मार ले ,उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। || 3 | |
होनी तो होके रहे लाख करे किन कोय।
जाकू राखै साईंयां मार सके न कोय।
फ़ानूस बन जिसकी हिफाज़त हवा करे ,
वो शम्म -अ क्या बुझे रोशन जिसे ख़ुदा करे।
फ़ानूस :शैंडेलियर्स ,Chendelliars ,Lamp shades
अपने प्रभु पर जब विश्वास जगता है ,तो जीवन तन मन को उसी की धरोहर मानकर उसी पर समर्पित कर देता है। गुरुनानक का विश्वास है ,परमात्मा को समर्पित हो जाने वाला गुरुमुख सदा विजयी होता है ,मन के संकेतों पर आचरण करने वाला मन की मानने वाला मनमुख जीव जीवन में पराजित हो जाता है।
https://www.youtube.com/watch?v=lYsA9v_iC34
साधु निंदक मित्र हमारा... |श्री चरण दास जी महाराज पद | परम पूज्य श्री राजेंद्र दास जी महाराज ❣❣❣
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