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अर्जुन का भगवान् के शरण हो स्वकर्तव्य पूछना : कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव : पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेता : , यच्छ्रेय : स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यतेहं शाधि मां त्वां प्रपन्नं

अर्जुन का भगवान् के  शरण हो स्वकर्तव्य पूछना :

कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव : पृच्छामि त्वां  धर्मसंमूढचेता : ,

यच्छ्रेय : स्यान्निश्चितं  ब्रूहि तन्मे शिष्यतेहं शाधि मां त्वां प्रपन्नं 

भावार्थ :  कार्पण्य -दोषोपहत -स्वभाव : अर्थात कायरता रूप दोष करके उपहत हुए स्वभाव वाला और 

 धर्म -संमूढचेता : अर्थात धर्म के विषय (स्वाभाव )में  मोहितचित्त (सम्मोहित )हुआ मैं 

त्वां-पृच्छामि-यत  -आपको पूछता हूँ जो कुछ 

न्निश्चितं -निश्चय किया हुआ 

श्रेय : मेरे लिए कल्याणकारक साधन , 

स्वात -हो ,मां-मेरे को ,शाधि -शिक्षा दीजिये 



तत -वह ,

 ब्रूहि- कहिये (क्योंकि )

अहम् -मैं 

ते -आपका 

शिष्य : शिष्य हूँ (इसलिए )

त्वां  -आपके ,प्रपन्नं-शरण हुए ,

प्रेयस और श्रेयस दो मार्ग हैं पहला जो आपको अच्छा लगता है ,प्रिय है ,सुखकारी प्रतीत होता है वही आपके दुःख का कारण बनता है।

श्रेयस -मार्ग कल्याण का है जो आरम्भ में भले कटंकाकीर्ण लगे दुःख देवे अंत में सुखकारी होता है।

गुरु बिना गति  नहीं गुरु की महिमा का प्रच्छन्न बखान है इस श्लोक में भगवान् कृष्ण स्वयं सांदीपनि मुनि के आश्रम में शिक्षा लेने गए थे सखा सुदामा संग ,जबकि वह तो स्वयं पहले गुरु  थे प्रथम अवतरित पुरुष ब्रह्मा के।

https://www.youtube.com/watch?v=tz7C0MEaMfQ

man tarpat hai hari darshan ko aaj..Rafi_Shakeel Badayuni_Naushad..a tribute










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