सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तिनका -तिनका जोड़कर गढ़ी गई तृणमूल , तिनके जब उड़ने लगे लगी अधर में झूल। रही अधर में झूल दिख रही है कमज़ोरी , जिसे छुपाने हेतु हो रही सीनाज़ोरी। घर में ही इक वोट रहा न अपना जिनका , बने वही यशवंत सहारे का अब तिनका। (कविवर ओमप्रकाश तिवारी )

तिनका -तिनका जोड़कर गढ़ी गई तृणमूल ,  तिनके जब उड़ने लगे लगी अधर में झूल।  रही अधर में झूल दिख रही है कमज़ोरी , जिसे छुपाने हेतु हो रही सीनाज़ोरी।  घर में ही इक वोट रहा न अपना जिनका , बने वही यशवंत सहारे का अब तिनका। (कविवर ओमप्रकाश तिवारी ) जबकि जयंत सिन्हा उद्घोष  कर रहे हैं ,खिलेगा कमल बंगाल में ,पिता यशवंत सिन्हा डूबते जहाज में आ बैठे हैं। चलो एक से भले दो ,दीदी का कुनबा तो तेज़ी से बिखर रहा है ,समेटे नहीं सिमट रहा ,लंगड़ दीन बदज़ुबान बदमिजाज़ दीदी ऊपर से धमकी और दे रही है -मेरे पैर ठीक होने दो ,फिर देखूँगी आपके पाँव बंगाल की ज़मीन पर ठीक से चलते हैं या नहीं।क्या देखेगी तू।  जब तक  तू चलने फिरने लायक होगी उससे पहले ही तेरा टाइटेनिक जल समाधि ले लेगा। दीवार पे लिखी इबादत पढ़। ज्यादा मत ऐंठ।  रस्सी जल गई बल नहीं गए। हमेशा कौन रहा है यहां किसकी सियासत रही है दीदी प्रारब्ध तो सबको भुगतना ही पड़ता है और आपकी करनी ,क्रियमाण कर्मों का फल १३० भारतीय जनतापार्टी के वर्कर्स की नृशंश हत्याएं करवाके तू भी चैन से नहीं बैठ पाएगी दीदी। अभी तो तेरी करनी आंशिक रूप से ह...

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : | न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||

माता शत्रु : पिता वैरी , येन बालो न पाठित : |  न शोभते सभा मध्ये ,हंस मध्ये बको यथा ||   सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.facebook.com/watch/?v=2773670096064129 भारतीय राजनीति के राहु मास्टर राहुल की आज यही नियति है ,उम्र इक्यावन मेधा बालवत। इनका कद ग्रुप आफ ट्वेंटी थ्री (गुलाम नबी आज़ाद साहब, कपिल सिब्बल साहब ,मनीष तिवारी जैसी समृद्ध परम्परा के धनी - मानी व्यक्तियों के बीच आज वैसे ही निस्तेज है जैसे हंसों के बीच बगुला ,कोयलों के बीच कागा ). जैसा बीज वैसा फल आज न इन्हें भारतीय इतिहास की जानकारी है न भूगोल की ,इनकी अम्मा आज भी हिंदी रोमन लिपि में लिखती पढ़ती हैं। देश में २०१९ से एक मत्स्य मंत्रालय भी है इन्हें इसका इल्म  नहीं है ?ये गांधी किस  बिना पे हैं जबकि इनके दादा फ़िरोज़ खान थे -पूछ देखो ,बगलें झाँकने लगेगा यह इक्यावनसाला बालक।   इन्हें अपने  खानदान अपनी ही जड़ों का बोध  नहीं है उत्तर दक्षिण का यह मतिमंद बालक  - विभेद अपनी विभेदन -शीला विखण्डनीय   बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए आज बतला रहा है। यकीन तो करना ही होगा।  ...