संस्मरण :काश के मेरा गाँव ....
Shiv Kant पूर्व सम्पादक BBC Hindi Service |
| 5:31 PM (36 minutes ago)
| | |
|
कोरोना महामारी की वजह से कोई साल भर से घर लंदन से बाहर निकलना नहीं हुआ था। पाबंदियाँ हट जाने के बाद पिछले सप्ताह एक रिकॉर्डिंग के लिए केंब्रिज जाना हुआ और इस सप्ताह मन हुआ कि किसी पुराने अंग्रेज़ी गाँव चला जाए। बस कार में बैठे और Bourton-on-the-water (बोर्टन-ऑन-द-वॉटर) नाम के एक चर्चित गाँव की तरफ़ चल दिए जो लंदन से 75 मील दूर इंगलैंड के दक्षिण-पश्चिमी Cotswold (कॉट्सवोल्ड) इलाक़े में पड़ता है।
Cotswold (कॉट्सवोल्ड) का इलाक़ा ऑक्सफ़र्ड, चैल्टनैम, बाथ और शेक्सपीयर के शहर स्ट्रैटफ़र्ड-अपॉन-एवन के बीच फैला है और अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए मशहूर है। नैसर्गिक सुंदरता के मामले में इसका स्थान इंग्लैंड के लेक डिस्ट्रिक्ट और यॉर्कशर डेल्स के बाद आता है। लहलहाती फ़सलों से ढकी लहरदार पहाड़ी ढलानों से घिरी घाटियाँ और उनमें छितरे जुरासिक कालीन पीले बलुआ पत्थर से बने ढलवाँ छतों वाले कदीमी मकानों वाले गाँव।
Bourton-on-the-water (बोर्टन-ऑन-द-वॉटर) भी ऐसा ही एक गाँव है जिसके बीचों-बीच Windrush (विंडरश) नाम की छोटी सी नदी बहती है। नदी क्या बस झरना कहिए। लेकिन गाँव के समतल घाटी में बसा होने के कारण इस नदी की धार छितरा कर इतनी चौड़ी हो जाती है कि किसी उथली नहर जैसी लगने लगती है। मोती जैसा साफ़ फ़ुट भर गहरा पानी। पानी में तैरती बत्तखें, काले और सफ़ेद हंस। लगभग 25 फ़ुट चौड़ी नदी के किनारे Cotswold में पाए जाने वाले पीले बलुआ पत्थर से बने हैं और इसे पार करने के लिए करीब चार सौ साल पुराने बलुआ पत्थर के ही पाँच पुल।
नदी के दाएँ किनारे पर सैलानियों के लिए लगी बैंचों और पैदल रास्ते के साथ-साथ खाने-पीने की दुकानें, होटल और घर हैं। बाएँ किनारे पर छायादार पेड़ों के नीचे हरी घास के लॉन जहाँ लगी बैंचों पर बैठ कर आप बहते पानी और धीमी बयार का आनंद ले सकते हैं। लॉन के साथ-साथ गाँव के बीच से गुज़रने वाली मुख्य सड़क और सड़क के पार दुकानों, दफ़्तरों और होटलों की क़तार है।
क़रीब तीन हज़ार की आबादी वाले इस छोटे से गाँव में इंग्लैंड की सुहानी गर्मी के दिनों में औसतन तीन लाख सैलानी प्रतिदिन आते हैं। पानी में पाँव लटकाए नदी के पक्के किनारों पर बैठ कर सुस्ताते लोग। अपने बच्चों को पानी में तैरती बत्तखें और हंस दिखाते लोग। अपने कुत्तों को नदी में नहाने के लिए छोड़ते लोग। बीयर पीते, खाना खाते, पिकनिक की चटाइयाँ बिछा कर मौज मनाते, आइसक्रीम खाते, गाते-बजाते लोग।
लेकिन क्या मजाल कि कचरे का, कुत्तों के मैले का या किसी और तरह का कोई कूड़ा आपको नज़र आ जाए! तीन हज़ार के गाँव में तीन लाख सैलानी खा-पीकर मौज-मस्ती करके शाम ढले अपने-अपने ठिकानों पर लौट जाते हैं। पर गाँव में अपनी लापरवाही का कोई निशान नहीं छोड़ते। हर कोई अपना कूड़ा कूड़ेदान में डाल कर जाता है और यदि वह भर गया हो तो उसे अपने साथ वापस ले जाता है।
राष्ट्रीयता की भावना शायद इसी का नाम है। अपनी धरती की नैसर्गिक सुंदरता का आनंद उठाते हुए उसकी हिफ़ाज़त भी करना। पूरे गाँव में पीले बलुआ पत्थर से बने नए और पुराने मकानों के आकार को देखकर आप नए-पुराने का भेद नहीं कर सकते। नए मकान पुराने मकानों की शैली पर ही बने हैं। केवल पत्थर की उम्र देखकर अंदाज़ा होता है कि कौन सा मकान सौ साल पुराना है और कौन सा नया।
पूरे गाँव में किसी पुलिस वाले की शक्ल नहीं दिखाई दी। जब लोग सभ्य हों, अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व करते हों और उसे निभाते हों तो पाबंदियों की ज़रूरत नहीं पड़ती। राष्ट्रीयता वन्दे मातरम् गाने या सारे जहाँ से अच्छा गाने या फिर कौन सा गाया जाए इस पर झगड़ा करने का नाम नहीं है। राष्ट्रीयता विरासत की रक्षा करने के लिए अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुए जीवन का आनंद लेने का नाम है।
काश कि हमारे गाँव भी Bourton-on-the-water (बोर्टन-ऑन-द-वॉटर) की तरह साफ़-सुथरे और मनोरम रह पाते। काश कि हम राष्ट्रीयता के नाम पर एक-दूसरे की गरदन पर सवार होने के बजाय अपना-अपना दायित्व पूरा कर पाते।
काश…
पूरे गाँव में किसी पुलिस वाले की शक्ल नहीं दिखाई दी। जब लोग सभ्य हों, अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व करते हों और उसे निभाते हों तो पाबंदियों की ज़रूरत नहीं पड़ती। राष्ट्रीयता वन्दे मातरम् गाने या सारे जहाँ से अच्छा गाने या फिर कौन सा गाया जाए इस पर झगड़ा करने का नाम नहीं है। राष्ट्रीयता विरासत की रक्षा करने के लिए अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुए जीवन का आनंद लेने का नाम है।
आशु प्रतिक्रिया :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
"लेकिन क्या मजाल कि कचरे का, कुत्तों के मैले का या किसी और तरह का कोई कूड़ा आपको नज़र आ जाए! तीन हज़ार के गाँव में तीन लाख सैलानी खा-पीकर मौज-मस्ती करके शाम ढले अपने-अपने ठिकानों पर लौट जाते हैं। पर गाँव में अपनी लापरवाही का कोई निशान नहीं छोड़ते। हर कोई अपना कूड़ा कूड़ेदान में डाल कर जाता है और यदि वह भर गया हो तो उसे अपने साथ वापस ले जाता है।"
"राष्ट्रीयता की भावना शायद इसी का नाम है।"
"पूरे गाँव में किसी पुलिस वाले की शक्ल नहीं दिखाई दी। जब लोग सभ्य हों, अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व करते हों और उसे निभाते हों तो पाबंदियों की ज़रूरत नहीं पड़ती। राष्ट्रीयता वन्दे मातरम् गाने या सारे जहाँ से अच्छा गाने या फिर कौन सा गाया जाए इस पर झगड़ा करने का नाम नहीं है। राष्ट्रीयता विरासत की रक्षा करने के लिए अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुए जीवन का आनंद लेने का नाम है। "
एक प्रतिक्रिया : veerusa.blogspot.com पर
यही तो नागर बोध कहलाता है सिविलिटी मेरी आपकी हमारी हम कितना पढ़ या अपढ़ हैं। यही सब मैं ने अमरीका के विभिन्न राज्यों में देखा -सानहोज़े से एलडोराडो तक ,ओल्ड विलेज आफ एलेगज़ेनड्रिया ,वाशिंगटन डीसी ,वेस्ट वर्जीनिया ,ओहायो ,मिशगन के वन प्रांतर झीलों के किनारे ,स्काई लाइन ऑफ़ शिकागो नापते हुए ,बुफालो और ब्रह्माकुमारीज़ के रिज़ॉर्ट हंटर हिल्स (न्ययॉर्क की राजधानी )से सड़क मार्ग द्वारा डेढ़ घंटा दूरी पर। सब कुछ व्यवस्थित नागर सुविधाओं से लैस समुन्द्र के किनारों पर स्टॉप गेप वाशरूम्स देखे मेरे आपके चंदे से चलते हुए।
हम अपने नगर को साफ़ क्या रखते किसी जाट आरक्षण /गुर्जर आरक्षण की आड़ में अपने नगर को ही आग लगाते हैं राजनीतिक खुन्नस के चलते। टूलकिट पोषित लाल किले को भी निशाने पे ले चुकें हैं। वेषधारी किसान आंदोलन के नाम पर।
शिव भाई का यह संस्मरण हर भारतीय का क्षितिज नापता है उस भारतीय का जो नागर बोध से प्रेम रखता है राष्टीय प्रतीकों और इतिहास का दीवाना है।
हरेकृष्ण !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें